अगर आप उत्तर प्रदेश, झारखण्ड या बिहार से सम्बन्ध रखते है तो आपने यह शब्द सुना ही होगा। अगर नहीं सुना है तो जरूर जान लीजिए। कोहबर शब्द का अर्थ है -वर का निवास स्थान। इस शब्द को संस्कृत भाषा के शब्द कोष्ठवर का अपभ्रंस रूप भी माना जाता है।
कोहबर की परम्परा १०,००० – ३०,००० वर्ष पुरानी मानी जाती है।
कोहबर बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश में भीति चित्र परंपरा का प्राचीनतम उदहरण है जो वैवाहिक उत्सव में बनायीं जाने वाली लोक कला एक सांस्कतिक परम्परा का उदहारण है। विवाह हिन्दु धर्म के महत्वपूर्ण संस्कार में आता है।
शादी में दो महत्वपूर्ण अंग होते है- वेदाचार और लोकाचार।
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कोहबर ऐसी लोकाचार का हिस्सा है जिसमे प्रचलित लोक रिवाजो के आधार पर विभिन्न अनुष्ठान निभाए जाते है। वस्तुतः यह वर -वधु को विवाह के उपरांत कोहबर(निवास स्थान ) में लाये जाने के प्रक्रिया है और जिसमे निवास स्थान पर चित्रों का अंकन और विभिन्न वैवाहिक प्रक्रिया के दौरान संगीत के जरिये दांपत्य जीवन और सामाजिक जिम्मेदारी का सांकेतिक अंकन और गायन का प्रस्तुतिकरण है।
अगर हम सीधे शब्दो में कहे तो कोहबर वो घर है जहाँ चित्रों के अंकन द्वारा नव विवाहित जोड़े को आशीर्वाद और शुभकामनाये दी जाती है और इसी दौरान स्त्रिया लोक गान भी गाती हैं। तो इस प्रकार हम देखते है कि कोहबर का वैवाहिक अनुष्ठान में कितना महत्व है।
कोहबर गीत सुनें:-
कोहबर के दौरान घर की स्त्रियां जो चित्रों का अंकन करती है और लोकगीत गाती हैं उसका भी अपना ही महत्व है। वेदो और पुराणों के अनुसार भगवान् शिव और माता पार्वती का विवाह सबसे सफल माना जाता है इसलिए कोहबर में चित्रों का अंकन कर भगवान् से सफल वैवाहिक जीवन की प्राथना की जाती है।