भोजपुरी लोकसंगीत में ‘चइता गीत’ के एगो अलगे महत्त्व बा। ई गीत खासकर चइत्र महीना (मार्च-अप्रैल) में गावल जाला, जवना के कारण एकर नाम ‘चइता’ पड़ल। ई गीत ना केवल मनोरंजन के साधन ह, बलुक भोजपुरी समाज के भावना, संस्कार आ लोकजीवन के भी सजीव चित्रण ह।
चइता के रूप आ विशेषता
चइता गीत मुख्य रूप से देवी-देवता के स्तुति, प्रेम, विरह आ सामाजिक सरोकार पर आधारित होला। ई गीतन में स्वर, लय आ भावनात्मक गहराई के जबरदस्त मेल होला। आवाज में ऊ गरज आ तान होला जे सुनते ही मन छू जाला।
संगीत वाद्य:
ढोलक, झांझ, मंजीरा आ हारमोनियम चइता गावे में खास इस्तेमाल होखेला। आवाज के साथ-साथ ताल मिलाके जे समां बंधेला, उ भोजपुरिया संस्कार के सजीव बनावेला।
कुछ प्रसिद्ध चइता गीत के बोल (उदाहरण)
- “ए गोरी हमके भुलाइलू हो चइता के बेरिया…”
— ई गीत प्रेम आ विरह के भाव के बयान करेला। गवनवा गइल पति के याद में पियरी पियराइल बइठल बउरिहिन के पीड़ा झलकत बा। - “चइत मासे जियरा घबराइ…”
— ई गीत मन के बेचैनी के कहेला, जवन चइता के गरम हवा संग उठे लागेला। - “चलs सखी गंगा नहाए, चइता में पूजन करबs…”
— ई गीत धार्मिक भाव आ स्त्रियन के समूह में गावल जाए वाला गीत ह, जवन मेल-जोल आ लोक परंपरा के दरसावेला।
महिला स्वर में चइता गीत
भोजपुरी संस्कृति में महिला स्वर के अद्भुत योगदान बा। चइता गीतन में औरतन के भावनात्मक आवाज आ मेलजोल से भरल गायन से गीत अउरी भावुक हो जाला। गाँव-घर में भोर के समय, आंगन में बैठल महिलाएं जब चइता गावे लगेली, त पूरा माहौल अध्यात्म आ लोकगंध से महक उठेला।
चइता गीत के महत्व आजो बा
आज भी भोजपुरी समाज में चइता गीत के लोकप्रियता बरकरार बा। चाहे त्योहार होखे, गाँव के मंच होखे या यूट्यूब चैनल, चइता आजो लोगों के मन के छू रहल बा। अइसन लोकगीतन के संरक्षण करे के जरूरत बा ताकि अगिला पीढ़ी भी ई सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ सके।
अंत में:
चइता गीत खाली गीत ना ह, ई भोजपुरी जन-जीवन के आत्मा ह। हर बोल में, हर तान में, गाँव के खुशबू बसल बा। एह सांगीतिक परंपरा के जिंदा रखल हमनी सभे के जिम्मेदारी ह।