भोजपुरी संस्कृति में महिला के आवाज़ हमेशा से एगो मूल आधार रहल बा। चाहे ओह लोगन के जीवन में सुख-दुख के घड़ी होखे, तीज-त्योहार के अवसर होखे, कि खेत-खरिहान के काम – हर जगह भोजपुरी नारी आपन भावना के गीतन के रूप में प्रकट कइले बाड़ी।
👩🌾 गाँव के आँगन से उठल मीठ बोल
हमार भोजपुरिया समाज में लड़की लोग के बचपन से सिखावल जाला कि कौन समय पर कौन गीत गावल जाला। ई सिखावल ना, बलुक एक पीढ़ी से दोसर पीढ़ी तक संस्कृति के हस्तांतरण ह। महिलाएं आपन अनुभव, प्रेम, पीड़ा, उम्मीद अउर खुशी – सब कुछ गीतन में ढाल देहेली।
💍 बियाह गीतन में औरतन के सुर
जब शादी के माहौल होखे, त घर-आँगन में महिला गावत बाड़ीं –
“दूल्हा के माई सजनवा खोजेली…”
“कनिया के बिदाई में गम के गीत गूँजेला…”
ई गीत खाली मनोरंजन ना, बलुक संस्कार, भावना, अउर समाजिक व्यवस्था के आईना ह। औरतन के स्वर से हर रस्म के अपन अलग रंग मिलेला।
🌞 त्योहारन में नारी स्वर के महिमा
छठ पूजा, करवा चौथ, तीज, घरछठ – अइसन अनेक पर्व बा जवन में औरतन के स्वर से भक्ति अउर श्रद्धा के दरिया बहेला। छठ माई के गीत जइसे:
“केरवा जे फरेला …”
“उग हे सूरज देव, अरघ के बेर…”
ई गीत में भक्ति, तपस्या, आस्था – सब कुछ समाइल बा।
🧵 कामकाजी जीवन में गीतन के साथ
खेत में रोपनी होखे कि सिलाई-बुनाई – महिलाएं काम करत-करत गीत गावत बाड़ी। ई गीत उनका थकान दूर करेला आ एक दोसरा से जुड़ाव बनावेला। एकर उदाहरण बा:
“रोप लें रामा धान, खेतवा में…”
“झूलेली बहिनी झूला सावन में…”
🎧 आधुनिक मंच पर महिला लोकगायिका
आज डिजिटल मंच पर भी भोजपुरिया महिला लोकगायकन के आवाज़ गूँज रहल बा। यूट्यूब, इंस्टाग्राम, Aapan Geet जइसन मंचन पर अब महिला लोककलाकार अपन परंपरा के नव रंग में पेश करत बाड़ी। ई बदलाव सशक्तिकरण के निशानी ह।
✨ निष्कर्ष
भोजपुरी गीतन में महिला स्वर ना सिर्फ सुर के सजावट ह, बल्कि ई संस्कृति के आत्मा ह। अइसन आवाज़ जवन पीढ़ी दर पीढ़ी, संस्कार, भावना अउर समाज के बुनियाद के मजबूत करत आइल बा।
“भोजपुरी गीत में औरतन के सुर – माटी के खुशबू, मन के भाव अउर संस्कारन के अमिट छाप ह।”