बिहार के लोग सभी त्योहारों और धार्मिक आयोजनों को बहुत खुशी और प्यार के साथ मनाते हैं लेकिन जब छठ पूजा की बात आती है तो विशेष भावनाएं सामने आती हैं और वे दृढ़ता से मानते भी हैं कि यह उनके लिए सिर्फ एक त्योहार नहीं बल्कि एक भावना है। शायद इसीलिए बिहार का मुख्य त्योहार छठ पूजा है।
यह त्योहार बिहार में वैदिक काल से चला आ रहा है और यह अब बिहार की संस्कृति बन गया है और यह आधुनिक काल में वैदिक संस्कृति की झलक भी दिखाता है।
लेकिन छठ पूजा का क्या महत्व है कि लोग इस पर इतना अधिक विश्वास करते हैं, तो चलिए जानते हैं छठ पूजा के विशेष पर्व के इतिहास और उत्पत्ति के बारे में।
छठ का उद्भव
दरअसल छठ पूजा का जिक्र केवल पौराणिक कथाओं में ही नहीं बल्कि रामायण और महाभारत में भी मिलता है।
तो चलिए हम आपको महाभारत के काल में ले चलते हैं। आप सभी सूर्य पुत्र कर्ण को तो जानते ही होंगे वह एक महान योद्धा होने के साथ ही एक दानवीर के रूप में भी प्रसिद्ध थे।
ऐसा माना जाता है कि उन्होंने भगवान सूर्य की पहली उपासना अर्ग देकर की थी। वह सूर्य भगवान के परम भक्त थे और उनकी कृपा से ही वह एक महान योद्धा बने। तो ऐसे भगवान सूर्य को अर्ग देने की परम्परा की शुरुवात मानी जाती है।
अगर रामायण की बात करे तो ऐसा माना जाता है कि लंका के राजा रावण का वध कर अयोध्या आने के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी।
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छठ पूजा का इतिहास
पौराणिक कथा के अनुसार, प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे।
उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया और प्रियंवद की पत्नी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ।
संतान शोक में उन्होंने आत्म हत्या का मन बना लिया लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उसी वक्त ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवद से कहा, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मेरा नाम षष्ठी है।
देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया। राजा इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा।
छठ गीत सुनें:- जइह ना बाजार सइयाँ, सबकर डलियवा सूरजमल, सब दिन उगनी सूरजमल, अरे नीचा कच मचिया, चढ़त कर्तिकवा छठी मइया, ए छठी मइया लेलीं नेवता, अरे! सेर भर गेहूँवा
छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन देने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए। और ऐसा भी माना जाता है कि प्रकृति का छठा अंश होने के कारण देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी है और पुराण के अनुसार के सभी देवी मनुष्य की रक्षा करती है तथा उन्हें लंबी आयु प्रदान करती हैं। पुराणों में इन देवी का एक नाम कात्यायनी भी है। इनकी पूजा नवरात्र में षष्ठी तिथि को होती है।
आपको छठ पूजा के बारे में कौन सी बातें पता हैं मुझे कमेंट में लिख कर बताइये।