शुक्रवार, अप्रैल 18, 2025

सब दिन उगनी सूरजमल

छठ गीत: सब दिन उगनी सूरजमल

  • स्वर: चेतना सिंह
  • गीतकार: अज्ञात
  • रिकॉर्ड लेबल: आपन गीत

लिरिक्रस


अरे ! सब दिन उगनी सूरजमल,
एतना सवेर।
अरे ! सब दिनवा उगनी सूरजमल,
एतना सवेर।
अरे ! आजु काहे उगनी सूरजमल,
एतना अबेर।
अरे ! आजु काहे उगनी सूरजमल,
एतना अबेर।
अरे ! बाझिनी के पुत्र हो दिहते,
भइलें एतना देर।
अरे ! बाझिनी के पुत्र हो दिहते,
भइलें एतना देर।
अरे ! लंगड़ा के पाँव हो दिहते,
भइलें एतना देर।
अरे ! लंगड़ा के पाँव हो दिहते,
भइलें एतना देर।
अरे ! सब दिनवा अइनी छठीया मइया,
एतना हो सवेर।
अरे ! सब दिनवा अइनी छठीया मइया,
एतना हो सवेर।
अरे ! आजु काहे अइनी छठीया मइया,
एतना हो अबेर।
अरे ! आजु काहे अइनी छठीया मइया,
एतना हो अबेर।
अरे ! कोढ़िया के काया हो दिहते,
भइलें एतना देर।
अरे ! कोढ़िया के काया हो दिहते,
भइलें एतना देर।
अरे ! सब दिनवा उगनी सूरजमल,
एतना हो सवेर।
अरे ! सब दिनवा उगनी सूरजमल,
एतना हो सवेर।
अरे ! आजु दिनवा उगनी सूरजमल,
एतना हो अबेर।
अरे ! आजु दिनवा उगनी सूरजमल,
एतना हो अबेर।
अरे ! निर्धन के धन हो दिहते,
भइलें एतना देर।
अरे ! निर्धन के धन हो दिहते,
भइलें एतना देर।
अरे ! तिवइ के सुहाग हो दिहते,
भइलें एतना देर।
अरे ! तिवइ के सुहाग हो दिहते,
भइलें एतना देर।

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